प्रिय दोस्त State Legislature को हिंदी में राज्य विधानसभा कहा जाता हैं, निचे हम इसी के बारें में जानकारी प्राप्त करेंगे, वह भी बहुत ही असान भाषा में, तो चलिए शुरू करते हैं-
राज्य विधानसभा (State Legislature) 2024
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राज्य की राजनीतिक व्यवस्था में राज्य विधानमंडल की केंद्रीय एवं प्रभावी भूमिका होती हैं |
संविधान के छठे भाग में अनुच्छेद 168 से 212 तक राज्य विधान मंडल की संगठन, गठन, कार्यकाल, अधिकारीयों, प्रक्रियाओं,
विशेषाधिकार तथा शक्तियों आदि के बारे में बताया गया है |
यधपि ये सभी संसद के अनुरूप हैं फिर भी इनमें कुछ विभेद पाया जाता है |
Constitution of State Legislature (राज्य विधानमंडल का गठन)
राज्य विधानमंडल के गठन में कोई एकरुपता नहीं है | अधिकतर राज्यों में एक सदनीय व्यवस्था है,
जबकि कुछ में व्दिसद्नीय है |
वर्तमान में (2024) केवल छह राज्यों में दो सदन हैं, ये हैं-
आंधप्रदेश, तेलन्गाना, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक, जम्मू और कश्मीर |
State Legislature of Constitution of assembly (विधानसभा का गठन)
संख्या : विधानसभा के प्रतिनिधियों को प्रत्यक्ष मतदान से
व्यस्क मताधिकार के द्वारा निर्वाचित किया जाता है |
इसकी अधिकतम संख्या 500 और निम्नतम 60 तय की गई है |
इसका अर्थ है के 60 से 500 के बीच की यह संख्या राज्य की
जनसंख्या एवं इसके आकार पर निर्भर है |
Term of assembly (विधानसभा का कार्यकाल)
लोकसभा की तरह विधानसभा भी निरंतर चलने वाला सदन नहीं है |
आम चुनाव के बाद पहली बैठक से लेकर इसका सामान्य कार्यकाल पांच वर्ष का होता है
इस कल के समाप्त होने पर विधानसभा स्वतः ही विघटित हो जाती है,
हालाँकि इसे किसी भी समय विघटित करने के लिए राज्यपाल अधिकृत है |
Term of legislative council (विधानपरिषद का कार्यकाल)
राज्यसभा की तरह विधान परिषद एक सतत सदन है, यानी कि स्थायी अंक जो विघटित नहीं होता |
लेकिन इसके एक-तिहाई सदस्य, प्रत्येक दुसरे वर्ष में सेवानिवृत्त होते रहते हैं | इस तरह एक सदस्य छह वर्ष के लिए सदस्य बनता है |
speaker of the Assembly (विधानसभा अध्यक्ष)
विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से ही अध्यक्ष का निर्वाचन करते हैं |
सामान्यतः विधानसभा के कार्यकाल तक अध्यक्ष का पद होता है |
Assembly Deputy Speaker (विधानसभा उपाध्यक्ष)
अध्यक्ष की तरह ही विधानसभा के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव भी अपने बीच से ही करते हैं |
अध्यक्ष का चुनाव संपन्न होने के बाद उसे निर्वाचित किया जाता है | अध्यक्ष की ही तरह उपाध्यक्ष भी विधानसभा के कार्यकाल तक पद पर बना रहता है |
Chairman of the Legislative Council (विधान परिषद का सभापति)
विधान परिषद के सदस्य अपने बीच से ही सभापति को चुनते हैं |
पीठासीन अधिकारी के रूप में परिषद के सभापति की शक्तियां एवं कार्य विधानसभा के अध्यक्ष की तरह हैं |
हालाँकि सभापति को एक विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है जो अध्यक्ष को है कि
अध्यक्ष यह तय करता ही कि कोई विधेयक वित् विधेयक है या नहीं और उसका फैसला अंतिम होता है |
Deputy Chairman of Legislative Council (विधान परिषद का उपसभापति)
सभापति की तरह ही उप-सभापति को भी परिषद के सदस्य अपने बीच से चुनते हैं |
सभापति की अनुपस्थिति में उप-सभाध्य्क्षों ही कार्यभार संभालता है |
परिषद की बैठक के दौरान सभापति के न होने पर वह उसी की तरह काम करता है |
दोनों ही मामलों में उसकी शक्तियां सभापति के समान होती हैं |
To summon (आहूत करना)
राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन को राज्यपाल समय-समय पर बैठक का बुलावा भेजता है |
दोनों सत्रों के बीच छह माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए |
राज्य विधानमंडल को एक वर्ष में कम से कम दो बार मिलना चाहिए |
एक सत्र में विधानमंडल की कई बैठकें हो सकती हैं |
Postponement (स्थगन)
बैठक को किसी समय विशेष के लिये स्थगित भी किया जा सकता है |
यह समय घंटो , दिनों या हफ्तों का भी हो सकता है |
अनिश्चित काल स्थगन का मतलब है की चालू सत्र को अनिश्चित काल तक के लिए समाप्त कर देना
इन दोनों तरह के स्थगन का अधिकार सदन के पीठासीन अधिकार को है |
Pruning (सत्रावसान)
पीठासीन अधिकारी ( अध्यक्ष य सभापति ) कार्य संपन्न होने पर सत्र को अनिश्चित काल के लिए
स्थगन की घोषणा करते हैं |
इसके कुछ दिन बाद राष्टपति सत्रावसान की अधिसूचना जारी करता है |
हालांकि सत्र के बीच में भी राज्यपाल सत्रावसान की घोषणा कर सकता है |
Dissolution (विघटन)
एक स्थायी सदन के होने के नाते विधान परिषद कभी विघठित नहीं हो सकती |
सिर्फ विधानसभा ही विघठित हो सकती है |
सत्रावसान के विपरीत विघटन से वर्तमान सदन का कार्यकाल समाप्त हो जाता है
और आम चुनाव के बाद नए सदन का गठन होता है |
Quorum (quorum) (कोरम ( गणपूर्ति ))
किसी भी कार्य को करने के लिए उपस्थित सदस्यों की एक न्यूनतम संख्या को कोरम कहते हैं |
यह सदन में दस सदस्य या कुल सदस्यों का दसवां हिस्सा होता है, इनमें से जो भी ज्यादा हो |
यदि सदन की बैठक के दौरान कोरम न हो तो यह पीठासीन अधिकारी का कर्तव्य है
कि सदन को स्थगित करे या कोरम पूरा होने तक सदन को स्थगित रखे |
House voting (सदन में मतदान)
किसी भी सदन की बैठक में सभी मामलों को उपस्थित सदस्यों के बहुमत के आधार पर तय किया जाता है और इसमें पीठासीन 5 अधिकारी का मत सम्मिलित नहीं होता है |
केवल कुछ मामले जिन्हें विशेष रूप से संविधान में तय किया गया है |
Language in the Legislature (विधानमंडल में भाषा)
संविधान विधानमंडल में कामकाज संपन्न कराने के लिए कार्यालयी भाषा
या उस राज्य के लिए हिंदी अथवा अंग्रेज़ी की घोषणा करता है |
हालांकि पीठासीन अधिकारी किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है |
Rights of Ministers and Advocate General (मंत्रियों एवं महाधिवक्ता के अधिकार)
सदन का सदस्य होने के नाते प्रत्येक मंत्री एंव महाधिवक्ता को यह अधिकार है
कि वह सदन की कार्यवाही में भाग ले,
बोले एवं सदन से संबद्ध समिति जिसके लिए वह सदस्य रूप में नामित है,
वोट देने के अधिकार के बिना भी भाग ले |
Ordinary bill (साधारण विधेयक)
विधेयक का प्रारंभिक सदन : एक साधारण विधेयक विधानमंडल के किसी भी सदन में प्रारंभ हो सकता है |
ऐसा कोई भी विधेयक या तो मंत्री द्वारा या किसी अन्य सदस्य द्वारा
पुन : स्थापित किया जाएगा | विधेयक प्रारंभिक सदन में तीन स्तरों से गुजरता है :
- प्रथम पाठन
- द्वितीय पाठन
- तृतीय पाठन
Bill in second house (दूसरे सदन में विधेयक)
दुसरे सदन में भी विधेयक उन तीनों स्तरों के बाद पारित होता है, जिन्हें
प्रथम पाठन, द्वतीय पाठन एवं तृतीय पाठन कहा जाता है |
Money Bill (धन विधेयक)
संविधान में राज्य विधानमंडल द्वारा धन विधेयक को पारित करने के में विशेष प्रक्रिया निहित है | यह निम्नलिखित है :
धन विधेयक विधानपरिषद में पेश नहीं किया जा सकता | यह केवल विधानसभा में ही राज्यपाल की सिफारिश के बाद पुनः स्थापित किया जा सकता है |
State Legislature of Assembly equality (विधानसभा से समानता)
निम्नलिखित मामलों में परिषद की शक्तियों एवं स्थिति को विधानसभा के बराबर माना जा सकता है :
- साधारण विधेयकों को पुनः स्थापित और पारित करना |
- Question No 455 – भारत में राज्य-स्तरीय शासन में पारदर्शिता और भूमिका पर चर्चा करें | भस्ताचार पर प्रभावी अंकुश लगाने में लोकायुक्त के सामने आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेष्ण करें और इस संस्था को मजबूत बनाने के उपाय सुझाएँ |
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