History Delhi Sultanate 2022 | With Full Best information in Hindi

हेल्लों दोस्तों नमस्कार, आज हम आप को Delhi Sultanate से जुरे सारी जानकारी देने वाले हैं, इस लिए आप इसे पूरा जरुर पढ़े ताकि आप के सभी प्रश्नों का उत्तर यहाँ पर मिल जाए, तो चलिए शुरू करते हैं 

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दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate) 2022

1.(1) दिल्ली सल्तनत के पतन के कारन को लिखे ?

ans- दिल्ली सल्तनत का अंत तुगलक वंस के साथ ही शुरू हो गया था /

Delhi Sultanate उनकी साम्राज्य दुसरे वन्सो के अपेक्षा दिल्ली सल्तनत पर अधिक दिनों तक रहा था /

मोहम्मद बिन –तुगलक का उस सम्राज्य बाद के बिस्तार में अधिक योगदान रहा था /

वे अपने शक्ति का उपयोग करते हुए दक्षिनी राज्यों को अपने अधीन कर लिया ,

मोहम्मद – बिन – तुगलक के सूझ बुझ प्रकारम से ही तुगलक साम्राज्य को बिस्तार

एवं सम्मान मिला / तुगलक साम्राज्य के अंतिम शासक नसीरुद्दीन मोहम्मद के काल के उस साम्राज्य का नाम ही मिट गया /

  इसके पतन के कारन  निम्नलिखित है  .

 (अ ) दक्षिणी भारत के राज्यों का तुगलक शासन में सामिल करना –

     दक्षिणी भारत के राज्यों को दिल्ली के शासन में सम्मिलित करने का मुहीम का काम

मोंहम्माद – बिन – तुगलक ने किया , लेकिन उनका ये निति घटक शाबित हुयी क्युकी इस समय संचार एवं परीवहन की सुबिधा कम थी / 

(ब) मोहम्मद – बिन – तुगलक की असफल योजनाये –

     मोहम्मद –बिन –तुगलक जोखिम पूर्ण निर्णय लेने तथा परिश्रमी में   सक्षम थे ,

लेकिन उनके सारे योजनाए असफल होती गयी , जिसके कारन उसे अयोग्य समझा जाने लगा ,

क्योकि दिल्ली से दौलताबाद के लिए राजधानी का स्थानांतरण करना और

फिर दिल्ली को राजधानी के रूप में वापस लाने का निर्णय लेना उसके मानसिक संतुलन को विवाद में दाल दिया /

Delhi Sultanate उनके कठोर निति के विरोध में विद्रोह शुरू हुयी , सैनिक भी उनसे नाराज था ,

तथा उनके राज्य कोष भी दिवालया हो गया , जिसके कारन दिल्ली सलतनत का अंत हुआ /

(स ) तैमुर का आक्रमण –

   तैमुर अपनी साथ एक बड़ी सेना की टोली लेकर दिल्ली केओर बढ़ा , क्योकि तुगलक वंस का शक्ति कमजोर हो रहा था / जो तैमुर के सेना का प्रक्रम सह नहीं पाया , और युद्ध में उनका अंत हो गया /

State Legislature (राज्य विधानमंडल)

राज्य की राजनीतिक व्यवस्था में राज्य विधानमंडल की केंद्रीय एवं प्रभावी भूमिका होती हैं |

संविधान के छठे भाग में अनुच्छेद 168 से 212 तक राज्य विधान मंडल की संगठन, गठन, कार्यकाल, अधिकारीयों, प्रक्रियाओं, विशेषाधिकार तथा शक्तियों आदि के बारे में बताया गया है | यधपि ये सभी संसद के अनुरूप हैं फिर भी इनमें कुछ विभेद पाया जाता है |

Constitution of State Legislature (राज्य विधानमंडल का गठन) 

राज्य विधानमंडल के गठन में कोई एकरुपता नहीं है | अधिकतर राज्यों में एक सदनीय व्यवस्था है, जबकि कुछ में व्दिसद्नीय है | वर्तमान में (2019) केवल छह राज्यों में दो सदन हैं, ये हैं- आंधप्रदेश, तेलन्गाना, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक, जम्मू और कश्मीर |

Constitution of assembly (विधानसभा का गठन) 

संख्या : विधानसभा के प्रतिनिधियों को प्रत्यक्ष मतदान से व्यस्क मताधिकार के द्वारा निर्वाचित किया जाता है | इसकी अधिकतम संख्या 500 और निम्नतम 60 तय की गई है | इसका अर्थ है के 60 से 500 के बीच की यह संख्या राज्य की जनसंख्या एवं इसके आकार पर निर्भर है |

Term of assembly (विधानसभा का कार्यकाल) 

लोकसभा की तरह विधानसभा भी निरंतर चलने वाला सदन नहीं है | आम चुनाव के बाद पहली बैठक से लेकर इसका सामान्य कार्यकाल पांच वर्ष का होता है इस कल के समाप्त होने पर विधानसभा स्वतः ही विघटित हो जाती है, हालाँकि इसे किसी भी समय विघटित करने के लिए राज्यपाल अधिकृत है |

Term of legislative council (विधानपरिषद का कार्यकाल) 

राज्यसभा की तरह विधान परिषद एक सतत सदन है, यानी कि स्थायी अंक जो विघटित नहीं होता | लेकिन इसके एक-तिहाई सदस्य, प्रत्येक दुसरे वर्ष में सेवानिवृत्त होते रहते हैं | इस तरह एक सदस्य छह वर्ष के लिए सदस्य बनता है |

speaker of the Assembly (विधानसभा अध्यक्ष) 

विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से ही अध्यक्ष का निर्वाचन करते हैं | सामान्यतः विधानसभा के कार्यकाल तक अध्यक्ष का पद होता है |(Delhi Sultanate)

Assembly Deputy Speaker (विधानसभा उपाध्यक्ष) 

अध्यक्ष की तरह ही विधानसभा के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव भी अपने बीच से ही करते हैं | अध्यक्ष का चुनाव संपन्न होने के बाद उसे निर्वाचित किया जाता है | अध्यक्ष की ही तरह उपाध्यक्ष भी विधानसभा के कार्यकाल तक पद पर बना रहता है |

Chairman of the Legislative Council (विधान परिषद का सभापति) 

विधान परिषद के सदस्य अपने बीच से ही सभापति को चुनते हैं | पीठासीन अधिकारी के रूप में परिषद के सभापति की शक्तियां एवं कार्य विधानसभा के अध्यक्ष की तरह हैं | हालाँकि सभापति को एक विशेष अधिकार

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